अतिरिक्त >> कन्या का विवाह शीघ्र कैसे करें कन्या का विवाह शीघ्र कैसे करेंभुवनेश्वर प्रसाद वर्मा
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देश और काल के बदलते परिवेश में आजकल अनेक कारणों से भारतीय समाज में कन्या के विवाह में समस्या दुरूह होती चली जा रही है। ज्योतिर्विद् होने की वजह से मेरे पास बहुत सारे अभिभावक इस समस्या से निपटने के लिए सलाह मशवरा करने हेतु आते रहे हैं, आते रहते हैं।
Kanya Ka Vivah Kaise Karen A Hindi Book by Bhuvneshwar Prasad Verma
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राक्कथन
देश और काल के बदलते परिवेश में आजकल अनेक कारणों से भारतीय समाज में कन्या के विवाह में समस्या दुरूह होती चली जा रही है। ज्योतिर्विद् होने की वजह से मेरे पास बहुत सारे अभिभावक इस समस्या से निपटने के लिए सलाह मशवरा करने हेतु आते रहे हैं, आते रहते हैं।
बहुतों को मैंने बहुत सारे उपाय बतलाये और उनमें से बहुत सारे उपाय कारगर सिद्ध हुए। तब मैंने वैसे पीड़ित माता-पिताओं और कन्याओं के लाभार्थ कन्या की शादी शीघ्र कैसे करें-इस विषय पर एक शोधपरक लेख लिखा, जो जयपुर से प्रकाशित होने वाले ज्योर्विज्ञान विषयक मासिक पत्र‘ ज्योतिष-सागर’ के जून 1998 वाले अंक में प्रकाशित हुआ। पुनः इसी लेख को संशोधित रूप पटना से प्रकाशित होने वाले हिन्दी दैनिक ‘आज’ के 8 जून 2000 वाले अंक में, और कुछ समयोपरान्त उसी हिन्दी दैनिक (आज) के काशी और आगरा वाले संस्करणों में भी प्रकाशित हुआ। इसकी जबरदस्त अनुकूल प्रतिक्रिया हुई और अनेक विद्वज्जनों, ज्योतिर्विदों पी़ड़ित कन्याओं, उनके अभिभावकों और मेरे सुहृज्जनों ने इस विषय पर एक सांगोपांग पुस्तक लिखने की सलाह दी। मैंने उनकी सलाह पर गौर किया, तो देखा कि इस विषय पर इतनी सामग्रियाँ है, जिनका उपयोग करते हुए एक अच्छी खासी पुस्तक की रचना की जा सकती है। बात मेरे मन में जँच गयी और मैं पुस्तक-रचना प्रारम्भ के उपयुक्त समय की तलाश में लग गया। भगवान की कृपा से वह शुभ दिन आया, जब मैंने इसका श्री गणेश कर दिया।
एक कहावत है- ‘A Work begun is half done’ अर्थात काम जब एक बार शुरू हो गया, तो समझो उसी क्षण वह आधा पूरा भी हो गया, अब आधा काम शेष है, जो शीघ्र पूरा हो जाएगा। यद्यपि ज्योतिषीय कार्यों में उलझे रहने और कुछ जराजन्य रोगादि से ग्रस्त रहने के कारण, काम प्रगति से बढ नहीं पा रहा था, परंतु मेरे मित्र ‘भगवती पॉकेट बुक्स’,आगरा के व्यवस्थापक श्री राजीव अग्रवाल जी के द्वारा बार-बार आग्रहपूर्ण दबाव दिए जाने के कारण यह काम आज पूरा हो सका है, अन्यथा इसमें कुछ और विलम्ब हो सकता था।
इस पुस्तक में मैंने ब़डे ही मनोयोग से कन्या के विवाह से सम्बन्धित प्रायः सभी आवश्यक तथ्यों को बटोरने का प्रयास किया है, जिसकी जानकारी के अभाव में कन्याओं और उनके अभिभावकों की समस्याओं का निराकरण सम्भव नहीं था। सुविधा के लिए इस पुस्तक को ग्यारह अध्यायों में विभक्त किया गया है,
और प्रत्येक आध्याय में एक से एक बढकर आवश्यक तथ्यों का प्रामाणिक संकलन प्रस्तुत किया गया है। विषय को स्पष्ट करने के लिए, जहाँ आवश्यकता समझी गयी है, वहाँ तालिका, चित्र, कुण्डली और उदाहरणों का सहारा लिया गया है। विभिन्न प्रामाणिक पुस्तकों से उद्धरण प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे कथ्य को स्पष्ट और पुष्ट किया जा सका है। ‘मंलगी दोष’ के सम्बन्ध में पाठकों के बीच जो भ्रान्ति फैली हुई है, उसका विशद विवेचन प्रस्तुत कर उस भ्रान्ति को मिटाने का प्रयास किया गया है।
कन्या वर का चुनाव में किन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए इस पर एक अलग अध्याय है। कन्या की जन्मकुण्डली के आधार पर ग्रहों के कुप्रभाव और दुष्प्रभाव के कारण दाम्पत्य जीवन के सुख दुखों का विस्तृत फलादेश एक अलग अध्याय में किया गया है। वैवाहिक कार्यक्रम के विविध मुहूर्तों का विवेचन विधि-निषेध पूर्वक बतलाया गया है।
कन्या का विवाह शीघ्र कैसे करें–इसके ऊपर सर्वाधिक प्रकाश डाला गया है। शीघ्र विवाह के निमित्त जितने भी साधन (ग्रह शान्ति, व्रतोपवास, मंत्र-जप, स्त्रोत्र पाठ यंत्र धारण, आदि) उपलब्ध हैं, उन सबों का निराकरण करने की दिशा में अब तक किसी ग्रन्थ में एक जगह दिशा निर्देश नहीं प्रस्तुत किया गया है। इन साधनों के अतिरिक्त कुछ गोपनीय ढंग से करने योग्य टोटकों का भी उल्लेख कर पुस्तक की उपयोगिता बढ़ा दी गई है।
परिशिष्ट भाग में सारे मंत्र-तंत्र, पूजन विधि, तथा स्तोत्र-पाठ आदि का एक स्थान पर संकलन कर कन्या और उनके अभिभावकों को इन सब की जानकारी के लिए यत्र-तन्त्र भटकने से बचा लिया गया है।
मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक में निर्दिष्ट विधियों, उपायों के अवलम्बन से निश्चित रूप से उनका कल्याण होगा। जिनके लिए यह पुस्तक लिखी गई है।
इस पुस्तक की पांडुलिपि तैयार करने में मेरी पौत्री सुश्री श्वेता रानी और पौत्र राकेश रंजन ने बड़ी सहायता की है। वे सदैव ही मेरे आशीर्वाद के पात्र रहे हैं और रहेंगे। जिन मित्रों की प्रेरणा से य़ह पुस्तक लिखी जा सकी, उनमें श्री राजीव अग्रवाल जी का नाम अग्रगण्य है, जिनके दबाव के बगैर यह पुस्तक इतनी जल्दी आपके हाथों में नहीं पहुंच पाती है। मैं इन सब को अन्तःकरण से धन्यवाद देता हूँ।
बहुतों को मैंने बहुत सारे उपाय बतलाये और उनमें से बहुत सारे उपाय कारगर सिद्ध हुए। तब मैंने वैसे पीड़ित माता-पिताओं और कन्याओं के लाभार्थ कन्या की शादी शीघ्र कैसे करें-इस विषय पर एक शोधपरक लेख लिखा, जो जयपुर से प्रकाशित होने वाले ज्योर्विज्ञान विषयक मासिक पत्र‘ ज्योतिष-सागर’ के जून 1998 वाले अंक में प्रकाशित हुआ। पुनः इसी लेख को संशोधित रूप पटना से प्रकाशित होने वाले हिन्दी दैनिक ‘आज’ के 8 जून 2000 वाले अंक में, और कुछ समयोपरान्त उसी हिन्दी दैनिक (आज) के काशी और आगरा वाले संस्करणों में भी प्रकाशित हुआ। इसकी जबरदस्त अनुकूल प्रतिक्रिया हुई और अनेक विद्वज्जनों, ज्योतिर्विदों पी़ड़ित कन्याओं, उनके अभिभावकों और मेरे सुहृज्जनों ने इस विषय पर एक सांगोपांग पुस्तक लिखने की सलाह दी। मैंने उनकी सलाह पर गौर किया, तो देखा कि इस विषय पर इतनी सामग्रियाँ है, जिनका उपयोग करते हुए एक अच्छी खासी पुस्तक की रचना की जा सकती है। बात मेरे मन में जँच गयी और मैं पुस्तक-रचना प्रारम्भ के उपयुक्त समय की तलाश में लग गया। भगवान की कृपा से वह शुभ दिन आया, जब मैंने इसका श्री गणेश कर दिया।
एक कहावत है- ‘A Work begun is half done’ अर्थात काम जब एक बार शुरू हो गया, तो समझो उसी क्षण वह आधा पूरा भी हो गया, अब आधा काम शेष है, जो शीघ्र पूरा हो जाएगा। यद्यपि ज्योतिषीय कार्यों में उलझे रहने और कुछ जराजन्य रोगादि से ग्रस्त रहने के कारण, काम प्रगति से बढ नहीं पा रहा था, परंतु मेरे मित्र ‘भगवती पॉकेट बुक्स’,आगरा के व्यवस्थापक श्री राजीव अग्रवाल जी के द्वारा बार-बार आग्रहपूर्ण दबाव दिए जाने के कारण यह काम आज पूरा हो सका है, अन्यथा इसमें कुछ और विलम्ब हो सकता था।
इस पुस्तक में मैंने ब़डे ही मनोयोग से कन्या के विवाह से सम्बन्धित प्रायः सभी आवश्यक तथ्यों को बटोरने का प्रयास किया है, जिसकी जानकारी के अभाव में कन्याओं और उनके अभिभावकों की समस्याओं का निराकरण सम्भव नहीं था। सुविधा के लिए इस पुस्तक को ग्यारह अध्यायों में विभक्त किया गया है,
और प्रत्येक आध्याय में एक से एक बढकर आवश्यक तथ्यों का प्रामाणिक संकलन प्रस्तुत किया गया है। विषय को स्पष्ट करने के लिए, जहाँ आवश्यकता समझी गयी है, वहाँ तालिका, चित्र, कुण्डली और उदाहरणों का सहारा लिया गया है। विभिन्न प्रामाणिक पुस्तकों से उद्धरण प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे कथ्य को स्पष्ट और पुष्ट किया जा सका है। ‘मंलगी दोष’ के सम्बन्ध में पाठकों के बीच जो भ्रान्ति फैली हुई है, उसका विशद विवेचन प्रस्तुत कर उस भ्रान्ति को मिटाने का प्रयास किया गया है।
कन्या वर का चुनाव में किन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए इस पर एक अलग अध्याय है। कन्या की जन्मकुण्डली के आधार पर ग्रहों के कुप्रभाव और दुष्प्रभाव के कारण दाम्पत्य जीवन के सुख दुखों का विस्तृत फलादेश एक अलग अध्याय में किया गया है। वैवाहिक कार्यक्रम के विविध मुहूर्तों का विवेचन विधि-निषेध पूर्वक बतलाया गया है।
कन्या का विवाह शीघ्र कैसे करें–इसके ऊपर सर्वाधिक प्रकाश डाला गया है। शीघ्र विवाह के निमित्त जितने भी साधन (ग्रह शान्ति, व्रतोपवास, मंत्र-जप, स्त्रोत्र पाठ यंत्र धारण, आदि) उपलब्ध हैं, उन सबों का निराकरण करने की दिशा में अब तक किसी ग्रन्थ में एक जगह दिशा निर्देश नहीं प्रस्तुत किया गया है। इन साधनों के अतिरिक्त कुछ गोपनीय ढंग से करने योग्य टोटकों का भी उल्लेख कर पुस्तक की उपयोगिता बढ़ा दी गई है।
परिशिष्ट भाग में सारे मंत्र-तंत्र, पूजन विधि, तथा स्तोत्र-पाठ आदि का एक स्थान पर संकलन कर कन्या और उनके अभिभावकों को इन सब की जानकारी के लिए यत्र-तन्त्र भटकने से बचा लिया गया है।
मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक में निर्दिष्ट विधियों, उपायों के अवलम्बन से निश्चित रूप से उनका कल्याण होगा। जिनके लिए यह पुस्तक लिखी गई है।
इस पुस्तक की पांडुलिपि तैयार करने में मेरी पौत्री सुश्री श्वेता रानी और पौत्र राकेश रंजन ने बड़ी सहायता की है। वे सदैव ही मेरे आशीर्वाद के पात्र रहे हैं और रहेंगे। जिन मित्रों की प्रेरणा से य़ह पुस्तक लिखी जा सकी, उनमें श्री राजीव अग्रवाल जी का नाम अग्रगण्य है, जिनके दबाव के बगैर यह पुस्तक इतनी जल्दी आपके हाथों में नहीं पहुंच पाती है। मैं इन सब को अन्तःकरण से धन्यवाद देता हूँ।
भुवनेश्वर प्रसाद वर्मा कमल
1
आधुनिक समाज में विवाह की समस्या
कन्या की शादी करना प्राचीन किंवा मध्यकाल में इतना जटिल नहीं था, जितना आधुनिक काल में हो गया है। आधुनिक काल में भी, सौ-पचास वर्ष पूर्व, कन्या की शादी में अभिभावकों को विशेष दिक्कतों बाधाओं और परेशानियों को नहीं झेलना पड़ता था। लेकिन आजकल मध्यवर्ग परिवार के माता-पिता कन्या की शादी को लेकर बेहद परेशान और चिन्तित देखे जा रहे हैं। तिलक-दहेज की प्रथा पूर्वकाल में भी थी, लेकिन वह हँसी-खुशी और प्रेम-सौहार्द के रूप में थी।
कन्या के माता-पिता स्वेच्छा से अपनी कन्या को अथवा अपने दामाद-समधी की बिदाई के अवसर पर उपहार के रूप में गाय-बैल, आभूषण वाहन-सवारी और घरेलू उपयोग की अनेक वस्तुएँ प्रदान करते थे पर कालान्तर में इस स्वेच्छापूर्वक दिए गए उपहार को कुटुम्बीजन अपना अधिकार समझने लगे। फलतः दिनानुदिन शिक्षा सम्पन्न, नौकरी प्राप्त, या व्यवसायरत नवयुवकों को वसूलने का वर पक्ष के अभिभावकों को एक बहुत ही अच्छा बहाना मिल गया।
भारत की आजादी के पूर्व महँगाई की रफ्तार इतनी धीमी थी कि दस-बीस वर्ष बीत जाने पर भी वस्तुओं के क्रय मूल्य में कोई खास अन्तर नहीं दीखता था, लेकिन इधर आकर रुपए का इस तीव्र गति से अवमूल्यन होने लगा एक रुपये की वस्तु दस बीस रुपये में मिलने लगी है। फलतः तिलक-दहेज के नाम पर धनलोलुप वर-पक्ष के लोगों की मांग इतनी बढ गयी है
कि साधारण परिवार या अल्प वेतन भोगी मध्यवित्त परिवार के लोगों के लिए अपनी कन्या के लिए धन जुटाना एक टेढ़ी खीर हो गया है। जिनके घर में एक से अधिक दो-या चार कन्याओं के विवाह की समस्या हो, उनकी तो हालत बिगड़ जाती है, वे लुट जाते हैं। ऐसे घरों की बहुत सारी कन्यायें माता-पिता की आर्थिक तंगी से तंग आकर या तो आत्महत्या कर लेती हैं या आजीवन क्वाँरी रह जाती हैं।
वर्तमान काल में फैशन की होड़ के कारण भी कन्या की शादी में बाधायें आ रही हैं। वर को गोरी कन्या चाहिए (श्यामांगी कतई नहीं) उनका नाक-नक्शा ऐसा हो, वैसा हो वह रूपवती होने के साथ ही शिल्पकला, पाक-विज्ञान, संगीत–नृत्यकला आदि में निष्णात हो, उसकी ऊँचाई इतनी हो; न ज्यादा दुबली हो न ज्यादा मोटी हो; इत्यादि इत्यादि और सबसे बढकर वह सुशिक्षित यानी कम से कम ग्रेजुएट हो।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों को देखने से यह भी पता चलता है कि लड़के वाले नौकरी प्राप्त या सेवारत कन्या को प्राथमिकता देना चाहते हैं। ऐसा इसलिए कि वधू के घर में आने पर उनकी आर्थिक तंगी दूर होगी या अधिक ऐशोआराम से वर-वधू की जिन्दगी कटेगी।
विवाह के पूर्व ही कन्यापक्ष वालों से वर पक्ष के होने वाले समधी दहेज में मिलने वाली वस्तुओं की फेहरिस्त माँग लेते है। इसमें सम्मिलित होती हैं, उन सभी वस्तुओं के नाम, जो उनके घरेलू उपयोग की होती हैं या घर की शोभा बढ़ाने वाली होती है।
जैसे–फ्रिज (अमुख कम्पनी और अमुक मॉडल की) रंगीन टेलीविजन (ब्लैक एण्ड व्हाइट टी. वी तो अब आउटडेटेड हो गए हैं और वे कुली-मजदूरों को मिलने लगे हैं), कूलर, हीटर, गीजर, ब्लोअर, ग्राइण्डर, वाशिंग मशीन, एक खास मॉडल की मोटरसाइकिल या कार, वीडियो रिकार्डर / प्लेयर कैमरा, (और क्या नहीं ?) और गृहोपयोगी अन्य सामान, यथा-सोफासेट, डाइनिंग टेबल-कुर्सी, फैन, सिलाई मशीन और दुनिया भर की और भी वे सभी वस्तुयें जो बाजार में शोरूम में देखने को मिलती हैं। इनके अलावा सोने-चाँदी के लाखों के जेवरात और नगद राशि का उल्लेख भी उक्त फेहरिस्ट में शामिल रहता है।
वर पक्ष वालों की ओर से और भी फरमाइशें होती हैं। जैसे–हम लगभग 200 बाराती लेकर आयेंगे, उनके लिए जाने-आने का या तो यात्रा भत्ता दे दें या सवारी का प्रबन्ध करें, फिर उनके स्वागत में अच्छे होटल में हठरने की उत्तम व्यवस्था (धर्मशाला या स्कूल में नहीं) नाश्ता में कोल्ड/ हॉट ड्रिंक्स, नाश्ते का पैकेट भोजन में ये सब और इतने आइटम्स लाइट बाजा का प्रबन्ध और बारात विदाई के समय सभी की यथायोग्य विदाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
इन सब टर्म्स और कंडीशन्स को देखकर ये लगता है कि जैसे वर पक्ष वाला अब तक महादरिद्र और मुफलिस था, जो अब लड़के के योग्य (शिक्षित और कमाऊ) बन जाने के बाद रातों-रात लक्ष्मीपति बनने का ख्वाब देख रहा है। ऐसे ही धन लोलुप किसी वर पक्ष वाले को कन्या के एक स्वाभिमानी पिता ने टका सा जवाब देते हुए कहा था कि मैंने तो समझा था आप एक धन सम्पन्न परिवार वाले व्यक्ति हैं,
लेकिन आज आपकी बातचीत और आपकी लेनदेन की शर्तों को सुनकर ऐसा प्रतीत हुआ कि आप सड़क पर चलते दरिद्र हैं, जिसके घर में न सोफे के लिए बिछावन है, न खाने के लिए अन्न। ऐसे दरिद्र परिवार में मैं अपनी कन्या नहीं दे सकता।’ ‘क्षमा करें’ ऐसा कहकर वह वर पक्ष के दरवाजे से उठा और चलता बना।
कुछ वर्ग के लोगों में वर-कन्या की जन्मकुण्डली को मिलाने का भी रिवाज है। दो-तीन पीढी पूर्व तक कन्या पक्ष वाले वर की कुण्डली मँगवा कर मिलान कर लेते थे, लेकिन अब रिवाज बदल गया है। अब वर पक्ष वाले इसमें ‘फाउल प्ले’ की आशंका से कन्या की ही जन्मकुण्डली मँगवा लेते हैं।
जन्मकुण्डली के साथ कन्या का फोटो और लेनदेन की फेहरिश्त भी मँगवाई जाती है। फोटो से कन्या के रूप-रंग और शारीरिक बनावट तथा बायोडाटा से पारिवारिक स्तर और कन्या की शिक्षा-दीक्षा का पता करने के बाद, अगर पता चल गया कि पार्टी लेनदेन में कमजोर है या खानदान और कन्या में कुछ त्रुटि है तो कह दिया जाता है कि जन्मकुण्डली नहीं बैठी।
कन्या के माता-पिता स्वेच्छा से अपनी कन्या को अथवा अपने दामाद-समधी की बिदाई के अवसर पर उपहार के रूप में गाय-बैल, आभूषण वाहन-सवारी और घरेलू उपयोग की अनेक वस्तुएँ प्रदान करते थे पर कालान्तर में इस स्वेच्छापूर्वक दिए गए उपहार को कुटुम्बीजन अपना अधिकार समझने लगे। फलतः दिनानुदिन शिक्षा सम्पन्न, नौकरी प्राप्त, या व्यवसायरत नवयुवकों को वसूलने का वर पक्ष के अभिभावकों को एक बहुत ही अच्छा बहाना मिल गया।
भारत की आजादी के पूर्व महँगाई की रफ्तार इतनी धीमी थी कि दस-बीस वर्ष बीत जाने पर भी वस्तुओं के क्रय मूल्य में कोई खास अन्तर नहीं दीखता था, लेकिन इधर आकर रुपए का इस तीव्र गति से अवमूल्यन होने लगा एक रुपये की वस्तु दस बीस रुपये में मिलने लगी है। फलतः तिलक-दहेज के नाम पर धनलोलुप वर-पक्ष के लोगों की मांग इतनी बढ गयी है
कि साधारण परिवार या अल्प वेतन भोगी मध्यवित्त परिवार के लोगों के लिए अपनी कन्या के लिए धन जुटाना एक टेढ़ी खीर हो गया है। जिनके घर में एक से अधिक दो-या चार कन्याओं के विवाह की समस्या हो, उनकी तो हालत बिगड़ जाती है, वे लुट जाते हैं। ऐसे घरों की बहुत सारी कन्यायें माता-पिता की आर्थिक तंगी से तंग आकर या तो आत्महत्या कर लेती हैं या आजीवन क्वाँरी रह जाती हैं।
वर्तमान काल में फैशन की होड़ के कारण भी कन्या की शादी में बाधायें आ रही हैं। वर को गोरी कन्या चाहिए (श्यामांगी कतई नहीं) उनका नाक-नक्शा ऐसा हो, वैसा हो वह रूपवती होने के साथ ही शिल्पकला, पाक-विज्ञान, संगीत–नृत्यकला आदि में निष्णात हो, उसकी ऊँचाई इतनी हो; न ज्यादा दुबली हो न ज्यादा मोटी हो; इत्यादि इत्यादि और सबसे बढकर वह सुशिक्षित यानी कम से कम ग्रेजुएट हो।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों को देखने से यह भी पता चलता है कि लड़के वाले नौकरी प्राप्त या सेवारत कन्या को प्राथमिकता देना चाहते हैं। ऐसा इसलिए कि वधू के घर में आने पर उनकी आर्थिक तंगी दूर होगी या अधिक ऐशोआराम से वर-वधू की जिन्दगी कटेगी।
विवाह के पूर्व ही कन्यापक्ष वालों से वर पक्ष के होने वाले समधी दहेज में मिलने वाली वस्तुओं की फेहरिस्त माँग लेते है। इसमें सम्मिलित होती हैं, उन सभी वस्तुओं के नाम, जो उनके घरेलू उपयोग की होती हैं या घर की शोभा बढ़ाने वाली होती है।
जैसे–फ्रिज (अमुख कम्पनी और अमुक मॉडल की) रंगीन टेलीविजन (ब्लैक एण्ड व्हाइट टी. वी तो अब आउटडेटेड हो गए हैं और वे कुली-मजदूरों को मिलने लगे हैं), कूलर, हीटर, गीजर, ब्लोअर, ग्राइण्डर, वाशिंग मशीन, एक खास मॉडल की मोटरसाइकिल या कार, वीडियो रिकार्डर / प्लेयर कैमरा, (और क्या नहीं ?) और गृहोपयोगी अन्य सामान, यथा-सोफासेट, डाइनिंग टेबल-कुर्सी, फैन, सिलाई मशीन और दुनिया भर की और भी वे सभी वस्तुयें जो बाजार में शोरूम में देखने को मिलती हैं। इनके अलावा सोने-चाँदी के लाखों के जेवरात और नगद राशि का उल्लेख भी उक्त फेहरिस्ट में शामिल रहता है।
वर पक्ष वालों की ओर से और भी फरमाइशें होती हैं। जैसे–हम लगभग 200 बाराती लेकर आयेंगे, उनके लिए जाने-आने का या तो यात्रा भत्ता दे दें या सवारी का प्रबन्ध करें, फिर उनके स्वागत में अच्छे होटल में हठरने की उत्तम व्यवस्था (धर्मशाला या स्कूल में नहीं) नाश्ता में कोल्ड/ हॉट ड्रिंक्स, नाश्ते का पैकेट भोजन में ये सब और इतने आइटम्स लाइट बाजा का प्रबन्ध और बारात विदाई के समय सभी की यथायोग्य विदाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
इन सब टर्म्स और कंडीशन्स को देखकर ये लगता है कि जैसे वर पक्ष वाला अब तक महादरिद्र और मुफलिस था, जो अब लड़के के योग्य (शिक्षित और कमाऊ) बन जाने के बाद रातों-रात लक्ष्मीपति बनने का ख्वाब देख रहा है। ऐसे ही धन लोलुप किसी वर पक्ष वाले को कन्या के एक स्वाभिमानी पिता ने टका सा जवाब देते हुए कहा था कि मैंने तो समझा था आप एक धन सम्पन्न परिवार वाले व्यक्ति हैं,
लेकिन आज आपकी बातचीत और आपकी लेनदेन की शर्तों को सुनकर ऐसा प्रतीत हुआ कि आप सड़क पर चलते दरिद्र हैं, जिसके घर में न सोफे के लिए बिछावन है, न खाने के लिए अन्न। ऐसे दरिद्र परिवार में मैं अपनी कन्या नहीं दे सकता।’ ‘क्षमा करें’ ऐसा कहकर वह वर पक्ष के दरवाजे से उठा और चलता बना।
कुछ वर्ग के लोगों में वर-कन्या की जन्मकुण्डली को मिलाने का भी रिवाज है। दो-तीन पीढी पूर्व तक कन्या पक्ष वाले वर की कुण्डली मँगवा कर मिलान कर लेते थे, लेकिन अब रिवाज बदल गया है। अब वर पक्ष वाले इसमें ‘फाउल प्ले’ की आशंका से कन्या की ही जन्मकुण्डली मँगवा लेते हैं।
जन्मकुण्डली के साथ कन्या का फोटो और लेनदेन की फेहरिश्त भी मँगवाई जाती है। फोटो से कन्या के रूप-रंग और शारीरिक बनावट तथा बायोडाटा से पारिवारिक स्तर और कन्या की शिक्षा-दीक्षा का पता करने के बाद, अगर पता चल गया कि पार्टी लेनदेन में कमजोर है या खानदान और कन्या में कुछ त्रुटि है तो कह दिया जाता है कि जन्मकुण्डली नहीं बैठी।
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- आधुनिक समाज में विवाह की समस्या
- विवाह के विविध प्रकार
- जन्मकुण्डली मेलापक की उपयोगिता
- कन्या का दाम्पत्य-सुख कैसा होगा?
- कन्या का विवाह कब, कहाँ, किधर होगा?
- विवाह योग्य वर-कन्या के आवश्यक गुण
- मंगली दोष विवेचन
- कन्या का विवाह शीघ्र कैसे करें ?
- ग्रह शान्ति द्वारा शीघ्र विवाह
- व्रतोपवास द्वारा शीघ्र विवाह
- यन्त्र धारण द्वारा शीघ्र विवाह
- भगवत्कृपा पर विश्वास से शीघ्र विवाह
- वैवाहिक कार्यक्रम के शुभ मुहूर्त
- शीघ्र विवाहार्थ कुछ अचूक टोटके
- परिशिष्ट
अनुक्रम
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
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